Baarish

Baarish

बारिश 
इस धरा की प्यास को बुझाने ,
ए बारिश ; तुम कब दस्तक दोगी ?
इंसान‌ और मिट्टी ; अब इसी इंतज़ार में ,
गीली बूॅंदों की बरसात ; आखिर कब होगी ?

तुम्हारें आने से पहले की ख़बर ,
देती हैं हवाऍं और घनघोर घटा…
तुम बरसती हो तो ; जैसे कोई ,
कैलाश से उत्पन्न हुई ; शिवजी की एक जटा…।

तरस जाती हैं ; अभिलाषा जिसके लिए ,
वो लहर ; सहर और मिट्टी की सुगंध…
तुम्हारें आने पर ही तो ; नसीब हैं‌ ,
गिलहरियों की वो दौड़ ; मंद-मंद…।

बचपन की आदतें ; अभी भी याद हैं ,
वो तैरती ; कोरे कागज़ की छोटी नाव…
भीगने से जो ; हमें बचा रखे ,
सड़कों पर आये ; पेड़ों की वो छाॅंव…।

वर्षा से ही तो ; संबंध हैं ,
अथवा ; इस वसुधा से कोई नाता नहीं…
धरती छोड़ ; इस संपूर्ण सृष्टि में ,
ऐसी जन्नत ; और भी हैं क्या कहीं ?

वृक्षों से ही तो ; तेरी परवरिश हैं ,
जो पत्तियों को ; कर जाती हैं नम…
तेरी स्थिति को ; समझ और संभाल‌ सके ,
क्या इतने काबिल इंसान ; बन पाऍंगे हम ?